ब्रज भाषे हौं भूलि सकति कबहूं नहिं तोकौं
तेरी महिमा और मधुरिमा मोहत मोकौं
वह वृंदावन नंदगांव गोकुल बरसानौ
जहां स्वर्ग कौ सार अवनितल पै रससानौ
वे कालिंदी कूल कलित, कलरव वा जल कौं
झलक जाये स्याम वरन अजहूं स्यामल कौ
वे करील के कुंज चीर उरझावन हारे
रहे आप बलवीर स्वयं सुरझावन बारे
वह केकी, पिक, कूह-कूह चातक की रटना
सांझ सवेरे नित्य नई पनघट की घटना
धेनु-धूरि में मोर-मुकुट बारी वह झांकी
घूंघट-पट की ओट, चोट की चितबन बांकी
वह कदंब की छांह, मेह झर ब्यौरी ब्यौरी
दिये जहां गलबांह सामरी गोरी-गोरी
वह  बसंत की ब्यार, सरद की सुंदर पूनौ
नटनागर कौ रास रहस जहं दिन दिन दूनौ
आंस गांस सौं भरी सांस सौं फूंकनबारी
हरे बांस की पोर हाय हरि की वह प्यारी
वह गोपिन कौ प्र्रेम और निरवाहन बारौ
ऊधौ कौ वह ज्ञान गरव गढ़ ढाहन हारौ

Author
राकेश सभाजीत मौर्या