टेक:- काना जल्दी से आना म्हारा गाँव को,

वंशी जोर से बजाना सुबह – शाम को।

मोहन मुरली वाले तूने पागल कर दिया मुझको,

जल्दी से आ जाना काना में समझा रही तुमको।

तोड़:- वापिस लौट के आना अपने धाम को वंशी जोर से बजाना।

कितने दिन हो गये श्याम क्योम ना वापिस आवें,

मोहन के दर्शन कूँ यहाँ पै जशोदा माँ घबरावे।

तोड़:- मैं तो भूलूँ कभी तिहारे नाम को ....

विन तेरे काना म्हारी गायनैय कौन चरावै,

मोहन के दर्शन कूँ मेरा जिया बहुत ललचावै।

तोड़:- मैं छोड़त डोलूँ अपने काम को वंशी जोर से बजाना।

मंगतू कह उस्ताज हमारो निज पान्हौरी वारो,

गा रहो हरदेवसिंह जो सबकूँ शीश नवारो।

तोड़:- जी नमन करें सारा गाँव को वँशी जोर से बजाना।