मेरी चुँदरी में पड़ गयो दाग री,
ऐसी चटक रंग डारो श्याम। [1]

मोहू सी केतिक ब्रज सुन्दरि,
उनसों न खेलै फाग री॥ [2]

औरन को अचरा न छुए,
याकी मोही सो पड़ रही लाग री। [3]

'बलिदास' वास ब्रज छोड़ो,
ऐसी होरी में लग जाये आग री॥ [4]

Author
श्री बलिदास जी