बिरज कौ भूगौल:-
बिरज आज की दौर में उत्तर दिसा में पलवल (हरयानौ), दखंन में ग्वालियर (मध्य पिरदेस), पस्चिम में भरतपुर (राजिस्तान) और पूरव में एटा (उत्तर पिरदेस) की सीमा लगै।। बिरज के मथुरा और विन्दावन मुख्य जिगह हैं। बिरज कौ भौगौलिक उत्तर में 27°41' और पूरव में 77°41' छेत्तरफल 3329.4 वर्ग किलो मीटर है। बिरजभासा जादा तर भरतपुर, मथुरा, आगरा, धौलपुर और अलीगढ़ जिलेन में बोली जाबै। बिरजभासा 1 करोड़ 23 लाख जनता के जरिये बोली जाबै और ई लगभग 38,000 वर्ग मील के ऐरिया में फैली हुई है। बिरज के लोगन्नैं या बिरजभासा ऐ बोलबे और सुनबे में भौत आनंद आबै।
बिरज के लोगन कौ जीवन:-
यहां लोगन कौ काम करबे कौ तौर तरीका अलग है। यहां लोग जादा तर खेती करैं और यहां के लोगन की आय कौ साधन खेती है। काम करबे में सब एक दूसरे का हात बटामै। यहां के लोगन कौ जीवन जीबे की तौर तरीका सीधौ सादौ है। यहां के लोगन कौ संसकिरती जीवन भौत बढ़िया है। सभी लोग बाग एक-दूसरे से मिलझुल कैं रहमें और यहां के लोगन की भगवान ते पूजा पाठ में भौत लगन है। बिरज में औरतन कौ सम्मान करनौ और छोटे बड़ेन कौ मान सम्मान करनौ यहां के लोगन कौ अच्छौ स्वभाव है।
मुसीबतन कौ सामनौ:-
यहां के लोगन्नैं गल्लेन मुसीबतन कौ सामनौ करनौ परै, क्यों कि यहां के लोगन काजैं खेती के अलावा आमदनी कौ और कोई साधन नांय। यहां के लोगन काजैं ऐसो कोई रोजगार नांय जाते अलग आमदनी है सकै। यहां पै जादा तर लोग बाग खेती करबे काजैं बारिस पै निरभर हैं। क्योंकि भौत सारे इलाके में पानी की कमी जादा है। जाते खेती करबे काजैं कोई खास पानी कौ साधन नांय। यहां पै लोगन की बेरोजगारी भौत जादा है। जिनके काजैं कोई रोजगार नांय।
बिरज की दिनचर्या:-
यहां लोग बागन कौ रोजीना कौ जीवन अलग ही तौर तरीका कौ है। सुबह चार बजे उठकें जंगल में जंगल झाड़ी हैबै जामैं। फिर भैंस ढोहरन काजैं न्यार फूंस डारैं, फिर याते पीछैं बईयर बानी भैंसन कौ दूद काढ़ैं। याते पीछैं लोग बाग नीम की दांतिन करैं और मांईस नल, कुआ आदि पै नहाबे जामें। नहाबे ते पीछैं दूद दरिया कौ कलेऊ करकें अपने-अपने कामन पै चले जामैं। बिरज में सब धरमन के लोग बाग आपस में मिलझुल कैं रहमैं।
बिरज कौ पहनाव:-
बड़े-बूढ़ेन में आदमीन कूं सफेद धोती–कुरता कंधा पै गमछा या साफी और सिर पै पगड़ी तथा बईयरन कूं लहंगा–चुनरी और साड़ी ब्लाउज समेत बालकन कूं झंगा-झंगली, झमला आदि पहरनाव पहरैं। जाडेन में गरम सौल ओढैं। आजकल के दौर में छोरेट पेन्ट–बुरसैट और छोरी सलवार सूट, आदि कौ पहनाव पहरैं। साधु-संत कौ पहनाव में सामान तौर ते केसरिया, सफेद और पीरे कपडा कौ चलन है। सरदी के दिनान में ये गरम कपडा पहरैं। और पामन में खड़ांऊ और कन्तान की जूती पहरैं। पामन में सीधे तौर ते जूता, चप्पल, सैन्डल आदि पहरैं।
बिरज कौ भोजन:-
बिरज कौ भोजन जो दाल-बाटी चूरमा के नाम ते जानौ जाबै। यह बिरज बासीन कौ मुख्य भोजन है। सादी समारोह, जनमदिन, पारटी और सैर सपाटे आदि मुख्य मौकेन पै भोजन तईयार करौ जाबै। यह भोजन पूरी तरह से देसी घी में तैयार हैबै। याके अलावा मिस्सी रोटी (गुरचिनी), मालपुआ, लड्डू आदि भी अपार में बनायौ जाबै। पेड़ा, घेवर, जलेबी बिरज की मिठाई हैं और इनमें सबते जादा विख्यात मिठाई पेड़ा है।
बिरज की संस्किरती:-
सादा जीवन में बिरज के लोग सुबह चार बजे जगैं। जगबे के बाद जंगल झाड़ी हैबे जामें। फिर डोर जैंगरेन कूं न्यार बाते पीछैं बईयर बानी भैंसन कौ दूद काडैं। आदमी उ नीम या बमूर की दांतिन करकैं नहाबाधोई करैं।, नहाबे ते पीछैं दूद-दरिया, चाय पानी आदि कौ कलेऊ करैं। कलेऊ करकैं अपनौ छोटौ-मोटौ काम करबे चले जामें। जैसैं खेत कौ काम मजदुरी आदि। फिर दोपहर में रोटी खामें फिर सब अपने-अपने काम पै लग जामें।
धारमिक जीवन:-
बिरज में अब सब धरमन के लोग पाये जामें। जैसै-सिक्ख, ईसाई, हिन्दू, मुस्लिम आदि और ये सब आपस में मिलजुल कैं रहमें।
बिरज में अनेकानेक गाबे बारी सैली चलन में हैं जैसे- गीत-गारी, हंसी-मजाक के चुटकला आदि और रसिया बिरज की भौत पुरानी गाबे बारी कला है। सामन के महिना में बईयर, छोरी झूला झूलबे की टैम पै गाई जाबे बारी मल्हार गायकी हंगामा बिरज तेई है। लोक संगीत में रसिया, ढोला, आल्हा, लावनी, चौबोला, बहल–तबील, भगत आदि संगीत भी टैम-टैम पै सुनबे कूं मिलै। याते अलावा रितु गीत, घरेलू गीत, संसकिरती के गीत टैम-टैम पै अलग-अलग समुदाय, जाति में गाये जामें।
मौसम (जलवायु):-
बिरज में गर्म मौसम कौ असर फागुन ते लैकैं असाड़ तक रहबै। (मार्च से जून) बा टैम में दिन में भौत धूप परै और बाके संग-संग लू भी चलै। दिना कौ तापमान 120-130 फ. डिगरी तक पोंहोच जाबै। पर रात लगभग ठंडी रहबै। वारिस सामन ते कुआर (जुलाई-सितम्बर) तक हैबै। पर यहां पै जाडेन में जादा ठंड परै और कभी-कभी कभी-कभी पालौ भी पर जाबै। बा टैम पै कम ते कम तापमान 40 फ. डिगरी तक है जाबै। जब कभी भी उत्तर ते ठंडी की लहर आ जाबै जब तौ और भी भयंकर ठंड परबे लग जाबै। पर बाकौ असर 5-10 दिना तक ही रहबै। बिरज में एक कहावत है - "धन के पन्दरै, मकर के पच्चीस, चिल्ला जाडे दिन चालीस" सकरांत के 15 दिन और मकर की सकरांत के 25 दिन कुल 40 दिनान तक जाडे कौ 'चिल्ला' रहबै। या भांति ते 31 दिसम्बर ते 10 फ़रवरी तक बिरज में खूब जाडौ परै।
खेती:-
फिलहाल समै में बिरज में सिंचाई के मुख्य साधन ट्यूबैल,कुआ,नहर और बम्बे हैं। कुआ ते सिचाई करबे कूं पानी निकारबे काजैं बैलन्नैं काम में लैबैं। बिरज में 'खरीफ' की फसल जैसे ज्वार, बाजरा, मक्का, मूंग, उडद आदि के संग कपास और गन्ने की फसल भी उगामें। 'रबी' की फसल में गेंहूं, जौ, मटर, सरसों, दूंआं आदि की अच्छी पैदावार हैबै। यमुना की खादर के रेतीले हिस्सा में साग-सब्जी बोमें जैसे- ककड़ी, खरबूजे, तरबूजे, कासीफल, तोरई आदि की बारी करैं और बचे हिस्सा में झाऊ, कांस, करील,बांस झरबेर आदि झाड़ियां पैदा हैमें। झाऊ टोकरी बनाबे में कांस और बांस छप्पर बनाबे में काम में लैमें। पहले समै में बिरज में नील की पैदावार हैबैई। पर आज के समै में ना हैबै। बिरज में फल की पैदावारी भी हैबै जैसैं-आम, जामुन,बेर आदि।
बिरज के भारकस:-
बिरज में बैलगाड़ी, ऊंट-गाड़ी, तांगा, नाव आदि।
बिरज के मुख्य त्यौहार:-
बिरज भूमि त्यौहारन की जनमभूमि है। यहां की रहन-सहन, खाबौ-पीबौ और बिरज कौ ऐरिया आदि ही मुख्य त्यौहार है। यहां हर मौसम, महिना और दिनान में त्यौहार आते रहमें। जैसैं-होरी, दीवारी, सामन, सकरांत, भोलाचौदिस,किरस्न जनम भूमि, यमुना छठ, गुरु पून्यौ, हरिदास जैन्ती, रथ–यात्तरा, रामनौमी, राधा आठैं, सरद पून्यौ, गोरधन पूजा, अक्छै नौमी, कंस मेला, कातिक नहाबौ, गंगा–दसैहरा आदि। इन सब त्यौहारन पै अलग-अलग तरै कौ भोजन बनामें।
बिरज के मुख्य देखबे लाक जिगह:-
थुरा, विन्दावन, गोवरधन, नंदगांम, बरसानौ, महावन, गोकुल, बलदेव, काम्यवन, ग्वालियर, भरतपुर (डीग), एटा। कोटवन, काम्यवन, कुमुदवन, कोकिलावन, खदिरवन, तालवन, बहुलावन, बिहारवन, बेलवन, मधुवन, महावन, लौहजंघवन।