एक भौत पईसा बारे सेठ की सिक्‍कान ते भरी थैली कहीं पै गिरगी। सेठ मन ही मन में भगवान ते पिराथना कर्रौ कै ई थैली मोय मिल जाय तौ परसाद चढाऊंगौ, गरीबन कूं भोजन कराऊंगौ। भाग्य ते एक गरीब बेरोजकार मांईसै ऊ मिलगी। थैली पै सेठ कौ नाम लिखरौ। ऊ बाय सेठ के घर लैकैं पौंहोंच गयौ। सेठ नै बू थैली खोलकैं देखी तौ चांदी के सिक्‍का बैसे के बैसे रखे। सेठ खुस हैगौ और बाकूं एक सिक्‍का दैबे लगौ। मांईस नै नाई कर दई। अगले दिना सेठ नै बू अपने घर भोजन करबे कूं बुलायौ। बू भोजन करबे चलेगौ। बाकूं भोजन करा दियौ। मांईस के जाबे ते पीछैं सेठ भूलगौ कै मैंनै मंदिर में भी कछू पिरवचन दिये। सेठ नै अपनी बईयर ते कही ई कितनौ मूरख निकरौ। इतेक कीमती सिक्‍कान्‍नै बिना भी कछू लिये ही चलेगौ। या बात पै सेठानी नै कही तुम गलत सोच रहे हो। ऊ मांईस ईमानदारौ। अगर ऊ चाहतौ तौ इन सबन्‍नै अपने ढिंग रख लैंतौ। भगबान्‍नै तुम दोनूंन की परिक्छा लई यै ऊ तौ पास हैगौ और तुम फैल हैगे। मौकौ तिहारे धिंग आयौ। फिर भी तुमनै लालच ऊ लौटा दियौ। मेरी मानौ तौ बाय ढूंढये बाके ढिंग ईमानदारी कौ धनै। बाय काम पै रख लेऔ। सेठ नै ऊ खोजौ पर ऊ कहीं ना मिलौ।