एक पहाडी गांम में एक बूढौ मांईस रहबैऔ। गांम के लोग महामूर्ख कहकैं बुलाबैय। वाके घर के सामई दो बडे पहाडे। जिन्नै दूसरी ओर पार करबे में कई दिना लग जाबैय। एक दिना वा मांईस नै अपने दोनूं छोरा बुलाये और उनकूं हात में कुदाल फाबरे दे दिये और कही कै पहाडै काटो। वे पहाड काट कैं गैल बनाबे के काम में लग गये। गांम के लोगन्नै मजाक उडाबौ सुरू कर दियौ। तुम सचमुच महामूर्ख हो। इतने बडे पहाडन्नै काट कैं गैल बनाबौ तुम बाप बेटों के बस के बहार है। बूढे नै जुबाब दियौ मेरे मरबे ते पीछैं मेरे बेटे याई काम बदस्तु (जारी) रखेंगे। बेटान ते पीछैं बेटान के पोते और पोतेन ते पीछैं परपोते। पीढी दर पीढी ई सिलसिला जारी रेहगौ। हलांकि पहाड बडे हैं, पर हमारे हौंसले और मनोबल ते बडे तौ ना है सकैं। बूढे की बात सुनकैं सब लोग अचम्बे में रहगे। कै जाय ओ महामूर्ख समझैय वानै तौ सफल हैबै कौ मूलमन्तर कौ रहस्य समझा दियौ। गांम बारे भी खुस हैकैं पहाड काटकैं गैल बनाबे में जुटगे। कछू महीनान की मैहनत ते पीछैं वहां पै एक सुन्दर सडक बनगी।
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