एक दिना इसकूल के बालकिन्‍नै घूम्बे कौ विचार बनायौ और वामै सब चीच खाबे की अपने-अपने घरन ते लाबे की कही। तौ उनमें ते एक बालक अपने घर कूँ गयौ और अपनी मईया कूँ सबरी बात बताई। बालक की बातै सुनकैं मईया चिंता में परगी। क्योंकि वाके घर खछू भी नाऔ पर थोरे से खजूरे। पर मईया नै सोची खजूर बढिया ना रिंहगे। साम कूँ जब वा बालक कौ बाप घर आयौ तौ बालक की मईया नै वाके बाप कूँ सबरी बात बता दी। बाप कौ जेव भी खालियौ। पर वानै सोची मेरे बेटा कौ दिल ना टोरुंगौ। वानै अपने मन में सोची पडोसीन ते उधार मांग्कैं मेरे बेटा कूँ खाबे कूँ सामान लै जाबे के मन की इच्छा जरूर पूरी करुंगौ। जब ऊ पड़ोसी के घर जाबे लगौ तौ बालक अपने बाप की मजबूरीयै समझगौ। ऊ नुकनी भाजकैं अपने बाप के ढिंग गयौ और नते कहरौ पिताजी उधार कूँ मत जाओ। मैं वैसैं भी घूम्बौ ना चांहू। अगर मैं जानौ चांहुगौ तौ घर में खजूर हतैं। उन्‍नैय ही लैं जांग्गौ। करज लैकैं सान दिखानौ सही नाय। अपने बेटा की या बातै सुनकैं बाप की आँखन में खुसी ही खुसी छागी। और बानै ऊ गरे लगा लियौ।

सीख- उधार लैकैं सान दिखाबे ते बढ़ियाए जो हमारे ढिंगै वाई पै खुस रैं।