एक पोत एक कोई मजबूरी कि समस्या में तेनालीराम नै राजा देवराय ते कछू रुपुआ उधार लिये। धीरें- धीरें समय आगौ रूपया वापिस दैबेकौ। पर तेनालीराम के ढिंग रूपया लौटावे को कोई पिरबंध नाओ। तौ बानै उधार उधार चुकावे की एक तरकीव सोची। एक दिना राजाय तेनालीराम की बईयेर की ओर ते एक पन्ना मिलौ। बा पन्ना में लिखरी तेनालीराम भौत ज्यादा बीमार है। तेनालीराम कई दिना ते दरबार में भी न आरौ। इसलिये राजा ने सोची कि मैं खुद जाकैं तेनालीराम को देखूँ। कहीं रुपयान की बजह ते कोई भानौ तौ न बनारौ। राजा तेनाली के घर पै पोंहोंचो। तो तेनाली कम्बर ओढ कैं खाट पै सोरौ। बाकी एसी स्थिति देखकें राजा नै वाकि बईयेर ते पूछी याकैं कहा हैगौ। तो बू बोली महाराज इनके दिल पै उधार कौ बोझ है ईयी चिन्ता इन्हें भीतर ते खारीय और सायद याही की वजह ते ये बीमार हैगे दीसैं। राजा ने तेनाली को तसल्ली दी और कहा तू परेसान मत हो। तू मेरी उधार मत चुकावै चिन्ता छोड़ जल्दी सही है जा। तेनालीराम खाट पै ते कूदगौ और हँस कें बोलो महाराज धन्यवाद। राजा रिसियाकें बोलौ याकौ मतलब तू बीमार नाय तू बहाने बनाकैं खाट में सोरोय। तेनीलीराम बोलो न, न महाराज मैंने तो ते झूंट न बोली। मैं तौ उधार के बोझ ते बीमारो।स तैनें जैसे ही मोय उधार ते मुक्त कर दियो तब ते मेरी सबरी चिन्ता खत्म हैगी। और मेरे ऊपर ते उधार कौ बोझ उतरगौ। या बोझै हटते ही मेरी बीमारी भी जाती रही और मैं अपने आप को सही स्वस्थ महसूस करबे लग्गौ हूँ। अब तिहारे आदेसानुसार मैं स्वतंत, स्वस्थ और खुस हूँ। सदां की तरह राजा के ढिंग कहबे कूँ कछू भी नाओ और बे तेनाली की योजना पर मुस्करा पडे।

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तेनालीराम