टेक- जगत के रंग क्या देखूं तेरौ दीदार काफी है
क्यों भटकूं गैरों के दर पै तेरा दरवार काफी है
1. नहीं चाहिये मुझको निराले रंग डंग मुझको निराले रंग डंग मुझको
चले जा हूं में खाटू जे तेरा सिंगार खाफी है
जगत के रंग क्या देखूं तेरौ दीदार काफी है
2. जगत के साज बाजों में हुये हैं कान अब भैरे हुये अब कान अब भैरे
कहां जाके सुनू बंसी मधुर भुगतान काफी है
जगत के रंग क्या देखूं तेरौ दीदार काफी है
3. जगत के रिस्तेदारों ने बिछाया जाल माया का
तेरे भक्तों से हो पिरीत (प्रिती) स्याम परिवार काफी है
जगत के रंग क्या देखूं तेरौ दीदार काफी है
4. जगत की झूंटी रोनक से है आंखें भर गई मेरी हैं आंखैं भर गई मेरी
चले आओ मेरे मोहन दरस की लास खाफी है
क्यों भटकूं गैरों के घर
जगत के रंग क्या देखूं तेरौ दीदार काफी है