1.आब नहीं आदर नहीं नैन में नेह।
तुलसी ऐसे घर मत जईयौ जहां कंचन बरसै मेह।।
अर्थ- सती नै जब भोले नाथ से पूछा हे प्रभु ये आकाश में देवताओं के वाहन कहां जा रहे हैं तो उस पर भोले नाथ बोले कि तुम्हारे पिताजी राजा दख्य (दक्ष) ने यज्ञ की है तब भोले नाथ बोले हमारा निमंत्रण नहीं है तौ सती जी बोली हम तो जायेंगे हमारे पिताजी के यहां यज्ञ है।
2.मड़ीधारी और केहरी पति विरता कौ गात ।
और सूम कौ धन मरे पै लगैगौ हात॥
अर्थ- अगर असली मणिधारी सांप होगा तौ अपने जीवित रहते हुए मणि को नहीं देगा, पर मरबे पर दे सकता है और ऐसे ही नहार सरीर पै हाथ नहीं लगाने देता है।
3. जल ते औंडौ कौन, कौन पिरथवी ते भारौ।
याकौ सुरता करौ विचार, कौन काजर ते भी कारौ।।
अर्थ- जल से ओंड़ो ज्ञान, धर्म पृथ्वी से भी भारौ आज कोई कलंक लग जाय तो काजल से भी काला होता है।
4.दूल्है अनेक फिरैं, बराती एक नहीं।
मूसलाधार बरसात परै, पृथ्वी पै बूंद एक नहीं।।
अर्थ- जव जनक नै सीता जी कौ स्वंमवर रोपौ तौ बाराती एक भी नहीं था। यामै सभी दूल्हे- दूल्हे थे। इन्द्र जी की पूजा हटाकर जब गोवर्धन की पूजा कराई कृष्ण ने और स्वयं ने गोवर्धन पूजा। जब इन्द्र नै वर्षा कौ कोप कर दिया था कि बहादो पूरे बृज को तौ जब कृष्ण ने अपनौ चक्र छोड़ दिया और पृथ्वी पै एक भी बूंद नहीं आने दी।
5.सोलह फुलका खाय भरोसौ राम कौ।
और बैंगन कौ नाय पतौ घुसौ कोई गांम कौ।।
अर्थ- कोई राहगीर रास्ता में होकर जा रहा था तो वहां पर गाँव वाले कुआं की लिसाई और मरम्मत का काम चल रहा था। तो मजदूर दोपहर को खाना खा रहे थे तो उन्होंने उस राहगीर से खाना खाने की पूछी तो उसने वहां पर खाना खाया। इसलिए ऐसा कहा गया है।
6.बगुला कूं सुन्दर पंख दिये, कोयल कर दीनी काली।
काबुल में सुन्दर फूल खिले, बिरज में करील कांटों वाली।।
अर्थ- कोयल की वाणी सुन्दर थी पर उसके पंख कर दिये काले, जब कि बगुला के सुन्दर पंख कर दिये और काबुल में सुन्दर फूल मिलैये (पाये जाते हैं) पर बृज में करील कांटे बाली मिलती है।
7. ओम नाम सबते बड़ा, इससे बड़ा ना कोय।
जो याकौ सुमरन करै, तौ दुख काय कौ कोय।।
अर्थ- ओम नाम भगवान का है इससे बड़ा कोई नहीं है, अगर याकौ सुमरन करेंगे तौ सबरे दुख दूर है जायेंगे।
8.विन्दावन के विरक्छ कौ, मरहम ना जानै कोय।
डार-डार, पात-पात पै, राधे- राधे होय।।
अर्थ- वृन्दावन के जो वृक्ष हैं वे देवता हैं। जो जितने भी देवता हैं स्वर्ग से ही कामना करते हैं कि हम वृक्ष में जाकर पेड़ बन जायें। इससे भगवान के दर्शन होते रहैं।
9. राधा मेरी मात है, पिता मेरे घनस्याम।
इन दोनों के चरन में मेरौ वारमवार पिरनाम।।
अर्थ- राधा मेरी माता है, पिता मेरे घनश्याम भगवान हैं। मैं इन दिंने के चरणों में मेरा बार- बार शीश हमेशा झुकता रहे।
10.बुरौ जो देखबे मैं चलौ, बुरौ न मिलौ कोई।
जो भी दिल खोजौ अपनौ, मोय ते बुरौ न कोई॥
अर्थ - जब मैंने इस संसार में बुराई को ढूंढा तब मुझे कोई भी बुरा नहीं मिला, जब मैंने खुद का विचार किया तो मुझसे बड़ी बुराई नहीं मिली, दूसरों में अच्छा बुरा देकने वाला व्यक्ति सदैव खुद को नहीं जानता जो दूसरों में बुराई ढूंढते हैं वास्तव में वही सबसे बड़ी बुराई है।
11.पोथी पन्नी किताव पढ़ी- पढ़ी पंडित हुयौ न कोई।
ढाई अक्छर पिरैम कौ, पढ़े ते सो पंडित होय॥
अर्थ - उच्च ज्ञान प्राप्त करने पर भी हर कोई विध्दान नहीं हो जाता है अक्छर ज्ञान होने के बाद भी अगर उसका महत्व न जान पाए, ज्ञान की करुणा को को जो जीवन में न उतार पाए तो वो अज्ञानी ही है लेकिन जो प्रेम के ज्ञान को जान गया, जिसने प्यार की भाषा को अपना लिया वह बिना अक्छर ज्ञान के विध्दान हो जाता है।
12. धीरैं - धीरैं रे मना, धीरैं सब कछु होय।
माली सीचैं सौ घडा, रितु आबै फल होय॥
अर्थ - धीरज ही जीवन का आधार है, जीवन के हरदौर में धीरज का होना जरूरी है फिर वह विधार्थी जीवन हो या व्यापारिक जीवन कबीर ने कहा है अगर कोई माली किसी पौधे को 100 घडे पानी भी डाले तो वह एक दिन में बड़ा नहीं होता और ना ही बिन मौसम फल देता है, हर बात का एक निश्चित वक्त होता है जिसको प्राप्त करने के लिए व्यक्ति में धीरज का होना आवश्यक है।
13. जाति न पूछै कभी भी साधु की, पूछ लैनो चहियै ग्यान।
मोल करो तलवार को, पडो रहन दो म्यान।।
अर्थ - किसी भी व्यक्ति की जाति से उसके ज्ञान का बोध नहीं किया जा सकता, किसी सज्जन की सज्रता का अनुमान भी उसकी जाति से नहीं लगाया जा सकता इसलिए किसी से उसकी जाति पूछना व्यर्थ है उसका ज्ञान और व्यवहार ही अनमोल है जैसे- किसी तलवार का अपना महत्व नहीं, म्यान महज उसका ऊपरी आवरण है जैसे जाति मनुष्य का केवल एक शाब्दिक नाम।
14. बोली एक अनमोल है, जो कोई बौलै जानि।
हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि।।
अर्थ - जिसे बोल का महत्व पता है वह विना शब्दों को तोले नहीं बोलता, कहते हैं कि कमान से छूटा तीर और मुँह से निकले शब्द कभी वापिस नहीं आते इसलिए इन्हें बिना सोचे समझे इस्तेमाल नहीं करना चाहिए, जीवन में वक्त बीत जाता है पर शब्दों के वाण जीवन को रोक देते हैं, इसलिए वाणि में नियंत्रण और मिठास का होना जरूरी है।
15. चाहे मिटी चिन्ता, मिटी मन वा बेपरवाह।
जाकू कछू ना चहियै, वह बड़ो सहनसाह।।
अर्थ - कबीर ने अपने इस दोहे में वहुत ही उपयोगी और समझने योग्य बात लिखी है कि इस दुनिया में जिस व्यक्ति को पाने की इच्छा है उसे उस चीज को पाने की ही चिन्ता है, मिल जाने पर उसे खो देने की चिन्ता है वो हर पल वैचेन है जिसके पास खोने को कुछ है, लेकिन इस दुनिया में वही खुश है जिसके पास कछु नहीं, उसे खोने का डर नहीं, उसे पाने की चिन्ता नहीं, ऐसा व्यक्ति ही इस दुनिया का राजा है।
16. माटी कहबै कुम्हार ते, तू क्या रौंदै मोय।
एक दिन ऐसो आबैगो, मैं रौंदुगी तोय।।
अर्थ - बहुत ही बड़ी बात को कबीर दास जी ने बड़ी सहजता से कहा दिया, उन्होने कुम्हार और उसकी कला को लेकर कहा है कि मिट्टी एक दिन कुम्हार से कहती है कि तू क्या मुझे कूट- कूट कर आकार दे रहा है एक दिन आयेगा जब तू खुद मुझ में मिलकर निराकर हो जायेगा अर्थात कितना भी कर्म कोड कर लो एक मिट्टी में ही समाना है।
17. माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर।
कर का मन का डार दै, मन का मनका फेर।।
अर्थ – कबीर जी कहते हैं कि लोग सदियों तक मन की शान्ति के लिये माला हाथ में लेकर ईश्वर की भक्ति करते हैं, लेकिन फिर भी उनका मन शान्त नहीं होता इसलिए कवि कबीर दास कहते हैं- हे मनुष्य इस माला को जप कर मन की शान्ति ढूँढ़ने के बजाय तू दो पल अपने मन को टटोल उसकी सुन देख तुझे अपने आप ही शांति महसूस होने लगेगी।
18.तिनका कबहुं ना निंदये, जो पांव तले होय।
कबहुं उड़ आंखो पडे, पीर घानेरी होय।।
अर्थ – जब धरती पर पडा तिनका आपको कभी कोई कष्ट नहीं पहुँचाता लेकिन जब वही तिनका उड़ कर आँख में चला जाये तो बहुत कष्ट दायी हो जाता है अर्थात जीवन के क्षेत्र किसी को तुच्छ अथवा कमजोर समझने की गलती ना करे जीवन के क्षेत्र में कब कौन क्या कर जाये कहा नहीं जा सकता।
19.गुरु गोविन्द दोनू खड़े, काके लागूं पांय।
बलिहारी गुरु आपनो, गोविन्द दियो मिलाय।।
अर्थ - यहाँ गुरु के स्थान का वर्णन किया है वे कहते हैं कि जब गुरु और स्वंय ईश्वर एक साथ हो तब किसका पहले अभिवादन करें अर्थात दोनों में से किसे पहला स्थान दें? इस पर कबीर कहते हैं जिस गुरु ने ईश्वर का महत्व सिखाया है- जिसने ईश्वर से मिलाया है वही श्रेष्ठ है क्योंकि उसने ही तुम्हें ईश्वर क्या हैं ऑर उसने ही तुम्हें इस लायक बनाया है कि आज तुम ईश्वर के सामने खड़े हो।
20.सुख में सुमिरन ना कियो, दुख में कऱें याद।
कह कबीर ता दास की, कौन सुनै फरियाद।।
अर्थ – जब मनुष्य जीवन में सुक आता है तब वो ईश्वर को याद नहीं करता लेकिन जैसे ही दु:ख आता है वो दौडा- दौडा ईश्वर के चरणों में आ जाता है फिर आप ही वतायें कि ऐसे भक्त की पीडा को कौन सुनेगा।
21.सांई इतनो दीजियो, जा में कुटुम समाय।
मैं भी भूखौ न रहुं, साधु ना भूखौ जाय।।
अर्थ – इस दोहे में कवि कहते हैं कि प्रभु इतनी कृपा करना कि जिसमें मेरा परिवार सुख से रहे और ना मैं भूखा रहूँ और न ही कोई सदाचारी मनुष्य भी भूखा ना सोये यहाँ कवि ने परिवार में संसार की इच्छा रखी है।
22.कबीरा ते मांईस आंधौ है, गुरु को कहते हैं और।
हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर।।
अर्थ – कबीर कहते इस दोहे में जीवन गुरु का क्या महत्व है वे कहते हैं कि मनुष्य तो अंधा है सब कुछ गुरु ही बताता है वे अगर ईश्वर नाराज हो जाये तो गुरु एक डोर हैं जो ईश्वर से मिला देती हैं लेकिन अगर गूरू ही नाराज हो जाये तो कोई डोर नहीं होती जो सहारा दे।
23.माया मरी ना मन मरौ, मर- मर गये सरीर।
आसा तिस्ना (तृष्णा) ना मरी, कह गए दास कबीर।।
अर्थ – कवि कहते हैं मनुष्य की इच्छा उसका एश्वर्य अर्थात धन सब कुछ नष्ट होता है यहाँ तक की शरीर भी नष्ट हो जाता है लेकिन फिर भी आशा और भोग की आस नहीं मरती।
24.दुख में याद सब करैं, सुख में करै न कोय।
जो सुख में याद करैं, दुख काई कूं होय।।
अर्थ – कवि कहते हैं प्रभु को सभी दुख तकलीफ में याद करता है , लेकिन जब प्र उस दुख को दूर करके सुख देते हैं तब मनुष्य प्रभु को ही भूल जाता है अगर मनुष्य सुख में भी प्रभु का चिन्तन करे तो उसे कभी दुख की प्राप्ति ही ना हो।
25.बड़ौ हुयौ तौ क्या हुयौ, जैसे पेड़ खजूर।
गैलारे को छाया नहीं, फल लगैं इतनी दूर।।
अर्थ – कवि ने वहुत ही अनमोल शब्द कहे हैं कि यूँ ही वडा कद होने से कुछ नहीं होता क्योंकि बड़ा तो खजूर का पेड़ भी है लेकिन उसकी छाया राहगीर को दो पल का सुकुन नहीं दे सकती और उसके फल इतनी दूर हैं कि उन तक आसानी से पहुंचा नहीं जा सकता इसलिये कवीर दास जी कहते हैं ऐसे बड़े होने का कोई फायदा नहीं दिल से और कर्मो से जो बड़ा होता है वही सच्चा बड़प्पन कहलाता है।