बिरजभासा में बात

करज की सान

एक दिना इसकूल के बालकिन्‍नै घूम्बे कौ विचार बनायौ और वामै सब चीच खाबे की अपने-अपने घरन ते लाबे की कही। तौ उनमें ते एक बालक अपने घर कूँ गयौ और अपनी मईया कूँ सबरी बात बताई। बालक की बातै सुनकैं मईया चिंता में परगी। क्योंकि वाके घर खछू भी नाऔ पर थोरे से खजूरे। पर मईया नै सोची खजूर बढिया ना रिंहगे। साम कूँ

च्यार मटका

भौत पुरानी बात ऐ। कोई गांम में एक कुम्हार रहबैऔ। ऊ मट्‍टी के बरतन बनाबैऔ। जाडेन के दिना में बानै मट्‍टी के भौत बढिया और लम्बे च्यार मटका बनाये। कुम्हार के और बरतन तौ खूब बिकते पर इन मटकान कौ कोई लैबार नाऔ। तौ एक दिना ये च्यारों मटका अकेले ही रहगे। तौ मटका अकेलेपन मिटाबे कूं आपस में बात करबे लगे। तौ पहलौ मटका बोलौ मैं तौ एक अच्‍छी सी मूरती बननौ चाहबैऔ जाते कोई अमीर के घर की सोभा बढातौ जाते लोग मोय देखबे कूं आते और मैं गर्व महसूस करतौ। पर मैं तौ एक मटका ही बनगौ जाय कोई भी ना पूछै। जभी दूसरे मटका नै अपनी परेसानी बताई और बोलौ मेरी तौ किस्मत खराब है। मैं तौ एक दियौ बनत

कोसिस की बारिस

एक गांम में एक साधू रहबैऔ। ऊ जब भी नाचैऔ तौ बारिस हैबैई। एक पोत सहर ते च्यार छोरा गांम में घूम्बे आये। जब उन्‍नै साधू बारी बात मालुम परी तौ उन्‍नै विस्वास ना हुयौ और साधू ते बारिस में नाचबे की चुनौती दैदी। कै हम भी नाचेंगे तौ बारिस होगी और हमारे नाचबे ते बारिस ना हुई तौ साधू के नाचबे ते भी बारिस ना होगी। अगले दिना दिननिकरैं सब लोग इकट्ठे हैगे। उन छोरान्‍नै नाचबौ सुरु करौ और एक जनौ आधौ घन्टा हैगौ पर बादर ना हैते दीखे तौ हारकैं नीचैं बैठगौ। कछू देर डटकैं दूसरौ छोरा भी नीचैं बैठगौ। धीरैं- धीरैं सबरे बैठगे पर बारिस ना हुई। अब साधू की बारी आई। बानै नाचबौ सुरु कर दियौ क

कोयला और चंदन

एक सज्‍जन मांईसौ। जब ऊ जादा बूढौ हैगौ तौ वानै अपनौ छोरा बुलायौ और वाते कहरौ बेटा मैंनै अपनौ सबरौ जीवन दुनिया कूं सिक्छा दैबे में निकार दियौ। अब मैं तोकूं कछू जरुरी बात बतानौ चांहु,पर बात बतावे ते पहलें तू मोकूं एक कोयला और चंदन का एक टुकडा लैकैं आ। बेटा घर में तेई कोयला और चंदन कौ टुकडा लै आयौ। तौ वाके बाप नै कही कै इन दोनून्‍नैं नीचैं फैंक दै। छोरा नै दोनूं चीज नीचैं फैंक दी और हात धोबे जाबे लगौ तौ वाकौ बाप बोलौ रुक बेटा मोय तेरे हातै तौ दिखा। छोरा नै हात दिखायौ तौ वाकौ बाप बोलौ बेटा तैनैं कोयला फैंक दियौ फिर भी हात में कालिख लगी रहगी। ऐसैं ही गलत लोगन के संग रहब

कठौती मे गंगा

एक भक्‍त रैदास कौ रहन-सहन गिरस्थी में रहबे के बाद भी संतन जैसौ। बाकौ काम जूता चप्‍पल बनाबौ और उनकी मरम्‍मत करबौ बाकौ पेसाऔ। एक दिना पून्यौ पै भौत दुनिया गंगा नहाबे कूं गंगा घाट पै जारे। पर वा रैदास की दुनिया सबनते अलगी। ऊ अपने काम में लगौ रहतौ और मीठे स्वर ते मन ही मन में भजन गाती रहती। एक बईयर रैदास के ढिंग चप्‍पल गठबाबे आई तौ वानै रैदास जी ते पूछी गंगा में सब नहाने जारैं तुम ना चलरे का भगत जी। मैं भी जारी हूं। तुम ना चलरे का। ऊ बोलौ देखौ बहन ई जूता चप्‍पलन कौ कितेक ढेर लगरौय ई सब काम करनौय। मैं तौ या कामें करतौ- करतौ गंगा मां के दरसन कर लुंग्‍गौ। बईयर गंगा नहाबे

 कट गयौ पहाड

एक पहाडी गांम में एक बूढौ मांईस रहबैऔ। गांम के लोग महामूर्ख कहकैं बुलाबैय। वाके घर के सामई दो बडे पहाडे। जिन्‍नै दूसरी ओर पार करबे में कई दिना लग जाबैय। एक दिना वा मांईस नै अपने दोनूं छोरा बुलाये और उनकूं हात में कुदाल फाबरे दे दिये और कही कै पहाडै काटो। वे पहाड काट कैं गैल बनाबे के काम में लग गये। गांम के लोगन्‍नै मजाक उडाबौ सुरू कर दियौ। तुम सचमुच महामूर्ख हो। इतने बडे पहाडन्‍नै काट कैं गैल बनाबौ तुम बाप बेटों के बस के बहार है। बूढे नै जुबाब दियौ मेरे मरबे ते पीछैं मेरे बेटे याई काम बदस्तु (जारी) रखेंगे। बेटान ते पीछैं बेटान के पोते और पोतेन ते पीछैं परपोते। पीढ

ओस बारौ मटका

एक राजाऔ। बाके पांच छोराए। राजा कूं दिन रात ई चिन्ता सताबैयी कै मेरे मरबे ते पीछैं कौन राजा बनेगा। एक दिना राजाय एक उपाय सूजौ। बानै मट्‍टी के कच्‍चे मटका मंगबाये और अपने राजकुमारन कूं एक- एक मटका दैते हुये कहरौ “ जो राजकुमार अपने मटकाय ओस के पानी ते भर लाबैगौ बाय मैं राजा बना दुंग्‍गौ। पांचौ राजकुमार मटकाय लैकैं एक खाली मैदान में पौंहचगे। और ओस के टपकान्‍नै (कण) इकठ्टे करकैं मटका में दारबे लगे। पर जैसे ही बे ओस के पानीय बामें डालैये मटका की कच्‍ची मट्‍टी बाय सोक लैती। लाख कोसिस करबे पै भी सफलता ना मिली। उनमें ते एक राजकुमार भौते तेज बद्‍दी बारौ तौ ऊ मटकाय लैकैं एक

एक यातरी

एक गांम में एक यातरी आयौ। वानै अपनौ घोडा रोककैं एक बडे बूढे मांईस ते पूछी। या गांम के कैसे लोग हैं। मैं या गांम में रहनौ चांहू। बूढौ मांईस बोलौ पहले तू ई बता जा गांम में तू रह रौ वा गांम के मांईस कैसे। घोडा बारौ यातरी बोलौ वा गांम कौ नाम भी मत लैबै। वा गांम के लोगन कौ नाम लैते ही मेरे हिरदैय में आग की लपटें जलबे लगैं। और मेरौ बस चलै तौ मैं  एक-एक की हत्या कर दूं। या बात पै वा बूढे मांईस नै कही या गांम में पचास साल ते तौ मैं रह रंऊ। या गांम के लोग इतने बुरे हैं कि तेरे गांम के लोगन ते जादा हत्या कर दें। हमारी रात -दिन हिरदैय में आग की लपटें जलती लगैं। नैक देर डटकैं

ऊंट और नींद

एक मांईसौ ऊ अपनी समस्यान ते भौत दुखीयौ। फिर ऊ एक बाबाजी के ढिंग गयौ। वानै बाबाजी ते अपने जीवन की भौत समस्या बतांई। जो कभी भी खतम ना हैमै। याकी बजह ते मेरी जिन्दगी खराब हैती जारीय। बाबजी नै कही अब तौ रात हैबे में कल समाधान बतांगौ। बाबाजी नै कही मेरे ढिंग भौत ऊंट हैं इनकी देखरेख बारौ बीमार हैगौय। तू रात कूं इनकी देखभार करियौ। जब ये सब ऊंट बैठ जामै तौ तू सो जइयौ। दूसरे दिना बाबाजी दिननिकरैं मांईस के ढिंग गयौ। बाते पूछी रात कूं कैसी औंग आई। मांईस नै जुबाब दियौ रात में कभी एक ऊंट खडौ है जाबै तौ कभी दूसरौ। सबरे ऊंट बैठे ही नाय। बाबजी हंसतौ हुयौ बोलौ ऐसेंई समस्यान के संग

ईमानदारी

एक भौत पईसा बारे सेठ की सिक्‍कान ते भरी थैली कहीं पै गिरगी। सेठ मन ही मन में भगवान ते पिराथना कर्रौ कै ई थैली मोय मिल जाय तौ परसाद चढाऊंगौ, गरीबन कूं भोजन कराऊंगौ। भाग्य ते एक गरीब बेरोजकार मांईसै ऊ मिलगी। थैली पै सेठ कौ नाम लिखरौ। ऊ बाय सेठ के घर लैकैं पौंहोंच गयौ। सेठ नै बू थैली खोलकैं देखी तौ चांदी के सिक्‍का बैसे के बैसे रखे। सेठ खुस हैगौ और बाकूं एक सिक्‍का दैबे लगौ। मांईस नै नाई कर दई। अगले दिना सेठ नै बू अपने घर भोजन करबे कूं बुलायौ। बू भोजन करबे चलेगौ। बाकूं भोजन करा दियौ। मांईस के जाबे ते पीछैं सेठ भूलगौ कै मैंनै मंदिर में भी कछू पिरवचन दिये। सेठ नै अपनी