रचौ रचौ है वृन्दावन रास

रचौ रचौ है वृन्दावन रास
लँगुरिया चलै तो दर्शन कर आमें

है कौन गाँव रानी राधिका
तो कौन गाँव घनश्याम

बरसाने की रानी राधिका
तौ नन्दगाँव घनश्याम

कौन वरन की रानी राधिका
तौ कौन बरन घनश्याम

गोरे बरन की रानी राधिका
तौ श्याम बरन घनश्याम

पहने कहा है रानी राधिका
और कहा पहने घनश्याम

लाल चुंदरिया राधे पहने है
तौ पीताम्बर घनश्याम

कहा करत है रानी राधिका
तौ कहा करत घनश्याम

निरत करत है रानी राधिका
और मुरली बजावै घनश्याम

श्री गोवर्धन महाराज, महाराज

श्री गोवर्धन महाराज, महाराज
तेरे माथे मुकुट बिराज रह्यौ

तौपे पान चढ़े, तौपे फूल चढे़, तो पै पान
और चढ़े दूध की धार, हाँ धार

तेरे गले में कण्ठा सोह रह्यौ, तेरे गले में
तेरी झाँकी बनी विशाल, विशाल,
तेरे माथे मुकुट विराज रह्यौ
तेरी झाँकी बनी विशाल, विशाल
तेरे माथे मुकुट बिराज रह्यौ

तेरी सात कोस की परिक्रमा, तेरी सात
चकलेश्वर है विश्राम, विश्राम
तेरे माथे मुकुट बिराज रह्यौ

आज दिन सोने का कीजो महाराज

आज दिन सोने का कीजो महाराज
सोने को सब दिन, रूपों की रात,

मोती के कलसे भराऊँ महाराज
आज बहूरानी मेरे घर में है आई 
नौबत-नगाड़े, बजवाऊँ महाराज

हरे-हरे गोबर अँगना लिपाऊँ 
बंदनवारें बँधवाऊँ महाराज

सखी-सहेलिन सबकू बुलवा के 
मंगल-गीत गवाऊँ महाराज

साज-सिंगार बहू को करवा के 
राई-नोन उतारूँ महाराज
आज दिन सोने को कीजे महाराज

ब्रज भाषे हौं भूलि सकति कबहूं नहिं तोकौं

ब्रज भाषे हौं भूलि सकति कबहूं नहिं तोकौं
तेरी महिमा और मधुरिमा मोहत मोकौं
वह वृंदावन नंदगांव गोकुल बरसानौ
जहां स्वर्ग कौ सार अवनितल पै रससानौ
वे कालिंदी कूल कलित, कलरव वा जल कौं
झलक जाये स्याम वरन अजहूं स्यामल कौ
वे करील के कुंज चीर उरझावन हारे
रहे आप बलवीर स्वयं सुरझावन बारे
वह केकी, पिक, कूह-कूह चातक की रटना
सांझ सवेरे नित्य नई पनघट की घटना
धेनु-धूरि में मोर-मुकुट बारी वह झांकी
घूंघट-पट की ओट, चोट की चितबन बांकी
वह कदंब की छांह, मेह झर ब्यौरी ब्यौरी
दिये जहां गलबांह सामरी गोरी-गोरी

अरी होली में हो गया झगड़ा,  सखियों ने मोहन को पकड़ा

अरी होली में हो गया झगड़ा, 
सखियों ने मोहन को पकड़ा ।
 
धावा बोल दिया गिरधारी
नन्द गाँव के ग्वाले भारी
तक-तक मार रहे पिचकारी
आँख बचाकर कुछ सखियों ने, 
झट से मोहन पकड़ा ॥ 

अरी होली में हो गया झगड़ा, 
सखियों ने मोहन को पकड़ा ।
 
सखियों के संग भानुदुलारी
ले गुलाल की मुट्ठी भारी
मार रहीं हो गई अँधियारी
दीखे कुछ नहीं तब भी, 
सखियों ने मोहन को पकड़ा ॥