गारीन की भरमार

एक कोरिया की छोरी कौ ब्याहौ। तौ वा छोरी की मईया अपने पति ते कहरी कि समदी आवैगौ ब्याह में हमपै तौ गारी-फारी भी ना आमै। तुम कहीं ते गारी सीखयाओ। कोरिया डेड सै रुपया लैकैं घत ते चलेगौ। जंगल में हर वारौ खेत जोतरौ तौ ऊ बोलौ तू कहां जारौय। ऊ बोलौ गारी सीखबे। खेत में नौरा गड्डौ खोदरौ। खेत बारौ बोलौ मैं सिखा

मूरख और समझदार

एक आदमी नै कोई बडे आदमी ते पूछी कै सिरीमान जी मूरख आदमी ते लोग गधा क्यों कहमै। बाते मूरख पने की बहस करैं। बड़े आदमी नै जुबाब दियौ- गधा यानि ग कौ मतलब गलत और धा लौ मतलब धारना, जामै गलत धारना हैबै ऊ गधा है। गलत यानी खोटौ, जाली (धारना) विचार बारौ मूरख हैबै। याई बजे ते मूरख आदमीय लोग गधा कहमै।

तेनाली की कला

विजय नगर कौ एक राजा अपने महल में चित्तर छपवानौ चाहरौ तो बानै एक चित्तरकार नियुक्त कर दियौ। बानैइत्तर बना दिये। जानै भी चित्तर देखे सबनैय भौत बढ़िया लगे लेकिन तेनालीरामै कछु संका लगी। एक चित्तर की पिरस्ठ भूमि में अलग नजारौ। फिर बानै सीधे स्वभाव ते पूछी जाकौ दूसरौ पक्छ कहाँ है। याके अंग कहाँ है। राजा नै

एक रिसी और दो सिस्य

एक रिसी के दो सिस्ये। जामें एक सिस्य सही सोच वारौ जो संदा दूसरेन की भलाई के बारे में सोचैयो। और दूसरो सिस्य गलत सोच वारो और स्वभाव ते भौत गुस्सा बारौ। एक दिन महात्मा अपने दोनूं सिस्यन की परीक्छा लैबे कूँ उन्नैय जंगल कूँ लैगौ। जंगल में एक आम कौ पेडौ जापै भौत सारे खट्टे मीठे आम लटक रे तौ रिसी नै पेड़ की

उधार को बोझ

एक पोत एक कोई मजबूरी कि समस्या में तेनालीराम नै राजा देवराय ते कछू रुपुआ उधार लिये। धीरें- धीरें समय आगौ रूपया वापिस दैबेकौ। पर तेनालीराम के ढिंग रूपया लौटावे को कोई पिरबंध नाओ। तौ बानै उधार उधार चुकावे की एक तरकीव सोची। एक दिना राजाय तेनालीराम की बईयेर की ओर ते एक पन्ना मिलौ। बा पन्ना में लिखरी तेनाल